Tuesday, March 8, 2011

दृढ़ संकल्प व परिश्रम में छिपी होती है सफलता

नई दिल्ली। यदि आप अपने क्षेत्र में नेता बनना चाहते हैं तो आपको दीर्घकालीन मानसिक चित्रण के साथ-साथ निर्णय क्षमता भी बढ़ानी होगी। यदि कोई संस्था जो केवल अपने व्यवसाय पर ही केंद्रित रहती है और व्यक्ति के विकास पर ध्यान नहीं देती है तो उसे गंभीर समस्या का सामना करना प़ड सकता है।
व्यक्तियों का विकास भी व्यवसाय के विकास की तरह बहुत मायने रखता है। कोई भी अनुभव के साथ जन्म नहीं लेता। काम करने से अनुभव मिलता है अगर कुछ गलत हो जाए, इच्छित फल न मिल पाए तो उसके लिए व्यक्तियों से पीछा नहीं छु़डाना चाहिए। इसके विपरीत उन्हें प्रक्रिया के बारे में पूरी तरह समझाना चाहिए, ताकि बेहतर नतीजों की अपेक्षा की जा सके। भारत सरकार में विश्वविद्यालयों से निकले छात्र-छात्राओं की भर्ती भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस), भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) या विदेश सेवा आदि में की जाती है। इन लोगों की निश्चित उद्देश्यों की प्राçप्त के लिए प्रशिक्षित किया जाता है। मैंने 1961 में आईपीएस में दाखिला लिया। 16 महीने के क़डे प्रशिक्षण के बाद मुझे एक साल का अलग-अलग पुलिस श्रेणियों में काम करना प़डा।
फिर मुझे कर्नाटक राज्य के बीजापुर जिले में पुलिस सब डिवीजन का कार्यभार दिया गया। इसी तरह मुझे केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के निदेशक पद तक पहुंचने में 35 साल लग गए। दूसरी ओर, बहुत कम निजी संस्थान अपने प्रबंधकों का हुनर निखारने का प्रयत्न करते हैं। किसी भी व्यवसाय को चलाने के लिए जरूरी है कि वहां काम कर रहे लोगों की क्षमता व हुनर को निखारने का प्रयास भी किया जाए। ब़डे अफसोस से कहना प़डता है कि लोगों के प्रशिक्षण व विकास के लिए बहुत कम निवेश किया जाता है। एक बार अब्राहम लिंकन ने कहा था, ""मुझे पे़ड काटने के लिए छह घंटे दो, मैं पहले चार घंटे तो कुल्ह़ाडी तेज करने में ही लगा दूंगा।"" किसी भी प्रबंधक का कौशल व हुनर निखारने से उसका और संस्था, दोनों का भला होता है। यह कोई ऎसा काम नहीं है कि जिसे आप कभी-कभी करें और भूल जाएं। यह काम तो लगातार करना प़डता है।
कोई कौशल होने के बावजूद आपको लगातार इसका अभ्यास बनाए रखना चाहिए। मैंने एक गायक से उसकी सफलता का राज पूछा तो उसने बताया कि वह अपना सारा समय अभ्यास में लगा देता है। मेरा एक मित्र कॉलेज में ब़डा अच्छा वक्ता था। उसने मुझे बताया कि वह मंच पर आने से पहले घंटों अभ्यास करता था और पूरी संतुष्टि मिलने के बाद ही मंच पर आता था। आत्मविश्वास एक कभी न समाप्त होने वाली प्रक्रिया है। हर व्यक्ति किसी न किसी रूप में स्वयं को बेहतर बनाना चाहता है। इसके लिए उसे लगातार कोशिश करते रहना चाहिए। एक योग्य प्रबंधक अपनी टीम को इतना सक्षम बना देता है कि वह आसानी से संस्था से जु़डे उद्देश्यों की पूर्ति कर सके। आदर्श तौर पर साल भर में कंपनी के 25 प्रतिशत लोग किसी भी समय प्रशिक्षण पर होने चाहिए, ताकि उनके हुनर, कौशल व जानकारी में वृद्धि हो और वे नई तकनीकी जानकारियां भी लें। जबकि अधिकतर संस्थानों से इसे समय व धन की हानि माना जाता है। यहां तक कि सरकार जो कि बहुत ब़डी नियोक्ता है, प्रशिक्षण केंद्रों की नियुक्ति के बारे में उदासीन ही रहती है।
मेरा आईपीएस में एक मित्र था। उसने मुझे बताया कि वह साल में कम से कम तीन माह प्रशिक्षण के लिए जाता है और इस तरह उसने पुलिस अधिकारियों के लिए बने सभी प्रशिक्षण ले लिए हैं। उसने स्वयं बताया कि वह हर काम को सही तरीके से करना पसंद करता है, इसलिए सबको उससे असुविधा होती है। उसे रास्ते से हटाने के लिए नौकरी से निकालना तो मुश्किल होता था इसलिए उसे प्रशिक्षण के लिए भेज दिया जाता था। ऎसा गैर-सरकारी संस्थानों में नहीं होता, जहां केवल बेहतर प्रदर्शन करने वाले ही बच पाते हैं। वे लोग मानव संसाधन विकास के नाम पर कोई खर्चा नहीं करते। सच है कि छोटी संस्थाएं प्रशिक्षण पर ज्यादा खर्च नहीं कर सकतीं, लेकिन वे दूसरी संस्थाओं द्वारा चलाए गए कार्यक्रमों से लाभ उठा सकते हैं। सरकार, सरकारी व निजी संस्थानों में यद्यपि काफी अंतर होता है। कुछ काम ऎसे हैं, जैसे नियम व कानून, पुलिस, न्याय व्यवस्था, पुल व यातायात आदि खर्चीले होने के कारण सरकार को ही करने चाहिए। सरकार के दिमाग में हमेशा लाभ की बात नहीं होती जबकि निजी योजनाएं इसे अपना अहम मुद्दा मानती हैं। दोनों को ही अपने उद्देश्य पाने के लिए यद्यपि श्रेष्ठ संगठनात्मक बल की आवश्यकता होती है। मेहनती, ईमानदार व बुद्धिमान व्यक्ति किसी भी संस्था की सफलता का आधार होते हैं जो कि किसी भी टीम की योग्यता बढ़ाने के लिए जरूरी है। कुछ लोग ऎसे भी होते हैं जो अपने आपमें सुधार लाने की इच्छा-शक्ति ही खो बैठते हैं। संस्था को ऎसे व्यक्तियों के चुनाव में सावधानी बरतनी चाहिए। सीबीआई निदेशक पद पर मुझे एक ऎसा सेक्रेटरी दिया गया जो न तो ठीक से डिक्टेशन ले पाता था और न ही कंप्यूटर चलाना जानता था।
मैंने उससे पूछा तो बोला कि वह छह महीने में ही सेवानिवृत्त होने वाला है, इसलिए उसे कोई नया हुनर सीखने की इच्छा नहीं है। मैंने उसे बताया कि मैं भी उसके कुछ माह बाद सेवानिवृत्त होने वाला हूं। यदि मैं कंप्यूटर सीखकर उसका इस्तेमाल कर सकता हूं तो वह क्यों नहीं कर सकताक् अपना हुनर बढ़ाने की बजाय उसने सेवानिवृत्ति की अवधि तक छुियां ले लीं और घर बैठ गया। मुझे एहसास हुआ कि मैंने एक अनचाहे कर्मचारी से छुटकारा पा लिया। सरकारी नौकरियों में ऎसे कई लोग होते हैं जो कुछ नहीं करते और कुछ सीखना ही नहीं चाहते, उनकी कहीं जरूरत नहीं होती और वे मुफ्त का वेतन पाते हैं। सारी सफलता दृढ़ संकल्प व परिश्रम में छिपी है। हमें ही अपने कामों का उत्तरदायित्व लेना प़डता है। यदि आपने महत्वपूर्ण क्षेत्रों में अपनी जानकारी बढ़ाई तो यह आपके ही काम आएगी। यदि आप जानते हैं कि आप क्या और कैसे कर रहे हैं तो आप सक्षम हो सकते हैं। किसी भी व्यक्ति या संस्था के लिए काम का रचनात्मक माहौल होना जरूरी है। जब लोगों की रचनात्मकता को प्रपत्र मिलता है तो उनकी योग्यता देखते ही बनती है और पूरी टीम संस्था के लक्ष्यों तक पहुंचने के लिए एकजुट हो जाती है। तब ऎसी संस्था से सफलता बहुत दूर नहीं होती।
(लेखक सीबीआई के पूर्व निदेशक हैं। डायमंड पॉकेट बुक्स प्रा. लि., नई दिल्ली से प्रकाशित उनकी पुस्तक "सफलता का जादू" से साभार)

No comments:

Post a Comment