Monday, March 14, 2011

भारत में सूनामी से मरे थे 3 लाख, जापान में काफी कम, आखिर क्‍यों?

नई दिल्‍ली. जापान में 11 मार्च, 2011 को आए भूकंप और सूनामी से मरने वालों की तादाद करीब 2000 बताई जा रही है। पर 26 दिसंबर, 2004 को भारत, श्रीलंका, इंडोनेशिया और थाईलैंड जैसे एशियाई देशों में आई सूनामी 2 लाख 26 हजार लोगों को लील गई थी। जापान में आई सूनामी की तीव्रता, 2004 में भारत में आई सूनामी की तीव्रता (9.1-9.3) जापान की सूनामी की तीव्रता (8.9) से थोड़ी ही अधिक थी। पर मौत के आंकड़े में इतना बड़ा फासला! आखिर क्‍यों?इसका सीधा कारण यही है कि जापान ने भूकंप के खतरे को समझ कर उससे निपटने के लिए अपने को हर तरह से तैयार किया है, लेकिन भारत में इस खतरे को अच्‍छी तरह समझा भी नहीं गया है। इससे निपटने का उपाय तो दूर की कौड़ी है।

भारत में कम नहीं है खतरा
भारत में 65 फीसदी क्षेत्र भूकंप संवेदनशीलता के लिहाज से जोन 3 में आता है। पूरे भारत को भूकंप संवेदनशीलता के लिहाज से चार सिस्मिक जोन (2, 3, 4 और 5) में बांटा गया है। जोन 5 में वे इलाके हैं जहां रिक्‍टर पैमाने पर 9 या उससे ज्‍यादा तीव्रता के भूकंप आने का खतरा रहता है। जोन 4 में 8 से 9 और जोन 3 में 6 से 8 तीव्रता वाले भूकंप का खतरा वाला इलाका रखा गया है। 17 राज्‍यों के 169 जिले भूकंप के लिहाज से सबसे ज्‍यादा संवेदनशील हैं।देश की राजधानी दिल्‍ली सिस्मिक जोन 4 में आता है। यहां भूकंप से पूर्वी दिल्‍ली इलाके (यमुना के करीबी) में ही एक लाख से भी ज्‍यादा घर जमींदोज हो सकते हैं। प्रोफेसर टीके दत्‍ता कहते हैं, ‘दिल्‍ली की मिट्टी में नमी बढ़ गई है और इसकी ताकत खोती जा रही है।’ दिल्‍ली में 2006 में मकानों में भूकंपरोधी तकनीक का इस्‍तेमाल अनिवार्य किया गया, लेकिन आज भी इस नियम का लगभग सौ फीसदी उल्‍लंघन हो रहा है। बाकी शहरों का भी यही हाल है।दिल्‍ली की 80 फीसदी से ज्‍यादा आबादी झुग्गियों या अनियमित कॉलोनियों में रहती है। इनके मकान इंजीनियर की सलाह के बिना बनाए गए होते हैं। प्रोफेसर एस. मुखर्जी के मुताबिक दिल्‍ली और कोलकाता के कुछ इलाकों में प्रति वर्ग किलोमीटर 2 लाख से भी ज्‍यादा लोग रह रहे हैं। ऐसे में भीषण भूकंप की स्थिति में जान का ज्‍यादा नुकसान होने का खतरा है।

जापान में सबसे ज्‍यादा खतरा

जापान में औसतन हर पांच मिनट पर भूकंप के हल्के झटके आते रहते हैं। दुनिया में रिक्टर स्केल पर 6 या उससे ज़्यादा तीव्रता वाले भूकंपों में से से 20 फीसदी सिर्फ जापान में आते हैं। जापान के पास मौजूद पैसिफिक बेसिन में समुद्र के भीतर ज्वालामुखी विस्फोट बहुत होते हैं। जापान 'रिंग ऑफ फायर' ज़ोन में स्थित है। जापान में भूकंप और सूनामी का लंबा इतिहास रहा है।जापानी लोगों को भूकंप झेलने की आदत हो गई है और वे इनसे बचने में माहिर हो गए हैं। वहां नियमित रूप से लोगों को भूकंप से बचने की ट्रेनिंग दी जाती है और अभ्‍यास कराया जाता है।

पर हमेशा तैयार रहता है जापान

जापान में सूनामी के प्रति आगाह करने का तंत्र बेहद मजबूत है। जापान ने भूकंप और इसके खतरों का जितना गहन अध्‍ययन किया है, उतना दुनिया के किसी देश ने नहीं किया है। इसी अध्‍ययन के आधार पर नियम बनाए हैं। देश भर में छोटे मकान से बड़ी इमारतें बनाने में इन नियमों का कड़ाई से पालन किया जाता है। वहां ऐसी व्‍यवस्‍था है कि भूकंप की स्थिति में परमाणु रिएक्‍टर अपने आप बंद हो जाता है।जापान ने भूकंप और सूनामी से जुड़े अध्‍ययनों और इससे नुकसान कम करने के लिए तकनीक विकसित करने पर अरबों डॉलर खर्च किए हैं। जापान में छह क्षेत्रीय केंद्रों के जरिए 180 सिसमिक स्टेशनों और 80 सेंसरों से सिग्नल भेजे जाते हैं, जो पानी में हैं। इनकी 24 घंटे निगरानी की जाती है। जापान में मौसम विभाग और समाचार चैनलों ने एक सिस्टम विकसित किया है, जिसमें किसी भूकंप या सूनामी जैसी किसी त्रासदी से पहले टीवी चैनलों पर चेतावनी फ्लैश होने लगती है। इसके अलावा सेटेलाइटों के जरिए जापान भर में स्थानीय अधिकारियों को ऐसी चेतावनी की जानकारी दी जाती है। साथ ही साइरन बजाने और लाउडस्पीकर पर भी संदेश प्रसारित करने और किसी भी त्रासदी में फंसे लोगों को बचाने का भी बेहतरीन इंतजाम है। जापान अपने चेतावनी तंत्र पर करीब 2 करोड़ डॉलर हर साल खर्च करता है। वहां भूकंप रोधी इमारतें बनाना कानूनी तौर पर जरूरी है।इसके उलट, भारत में आपदा प्रबंधन के लिए केंद्रीय और राज्य स्तर पर कुछ समितियां बना कर खानापूर्ति की गई है। इसमें निजी क्षेत्र की कुछ कंपनियों को शामिल किया गया है। जानकारों का मानना है कि भारत में आपदा प्रबंधन बिल्कुल कारगर नहीं है। यह हर बार साबित भी हो चुका है।

भारत में ऐसी त्रासदी का पता लगाने के कोई ठोस तंत्र नहीं है। मौसम विभाग की भविष्यवाणियां अक्सर गलत साबित होती हैं। भूकंप को लेकर चेतावनी देने का कोई कारगर सिस्टम नहीं है। भारत में भूकंप या सूनामी जैसी बड़ी प्राकृतिक आपदा के बाद फंसे लोगों को बचाने का भी बहुत उन्नत तंत्र नहीं है।भारत में 26 दिसंबर, 2004 को सूनामी की भेंट 18 हजार जिंदगियां चढ़ गई थीं। एशिया प्रशांत क्षेत्र में उस सूनामी के चलते करीब तीन लाख लोगों की मौत हुई थी। अकेले इंडोनेशिया में सवा दो लाख लोग सूनामी की भेंट चढ़ गए थे।भारत में हैदराबाद में सूनामी चेतावनी केंद्र बनाया गया है और दावा है कि किसी बड़े भूकंप के 10 मिनट के भीतर यह केंद्र सूनामी की चेतावनी देने में सक्षम है। इंडियन नेशनल सेंटर फॉर ओशन इन्‍फॉर्मेशन सर्विसेज में 125 करोड़ रुपये खर्च कर चेतावनी केंद्र स्‍थापित किया गया है। इस केंद्र की ओर से पिछले तीन सालों में भूकंप के 25-30 अलर्ट जारी किए गए हैं।

राहत और बचाव में भी पीछे

अस्‍पताल और डॉक्‍टर: भारत में किसी भी आपदा के समय जान का ज्‍यादा नुकसान इसलिए भी हो जाता है, क्‍योंकि यहां बुनियादी सुविधाओं का घोर अभाव है। भारत में हर एक हजार की आबादी के लिए अस्पताल में एक बिस्तर (0.7:1000) भी उपलब्ध नहीं है, जबकि जापान में यह अनुपात 8.2:1000 है। दुनिया के अन्य देशों का औसत 3.96 है। भारत में 1,722 लोगों की आबादी के लिए औसतन 1 डॉक्टर उपलब्ध है, जबकि जापान में प्रति एक हजार की आबादी पर औसतन 2.1 डॉक्टर है।

पैसे की दिक्‍कत: भारत सकल घरेलू उत्पाद के मामले में दुनिया की ग्यारहवीं सबसे बड़ी अर्थव्यस्था है। भारत की मौजूदा विकास दर 8.2 फीसदी है। दूसरी ओर, जापान कुछ समय पहले तक दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी (अब तीसरी) अर्थव्यवस्था वाल देश था।

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