Wednesday, March 9, 2011

तृतीय-विश्वयुद्ध' भड़का सकता है अमेरिका का कदम, दो गुटों में बंट रहा है विश्व!


त्रिपोली. लीबिया में गद्दाफी समर्थकों और विद्रोहियों  के बीच सत्ता हस्तांतरण को लेकर चल रहा सैन्य संघर्ष दुनिया को महाविनाश की और धकेल सकता है। गद्दाफी समर्थक वायु सेना द्वारा प्रदर्शनकारियों पर किए जा रहे हमलों को देखते हुए पश्चिमी देश लीबिया को जल्द से जल्द'नो फ्लाई ज़ोन' घोषित करना चाहते हैं। लेकिन गद्दाफी ने साफ कर दिया है कि यदि इस तरह का कोई प्रयास किया गया तो इसका जवाब हथियार से ही दिया जाएगा। इसी बीच कुछ प्रदर्शनकारियों ने लंदन में गद्दाफी के बेटे के बंगले पर कब्जा कर लिया है। गद्दाफी ने प्रमुख विरोधी नेता अब्दुल जलील  पर 400,000 डॉलर (याने करीब 1.8 करोड़ रुपए) का नाम रखा है। लीबिया में युद्ध तेज हो गया है और पहली बार मुअम्मर गद्दाफी ने तेल के बड़े ठिकानों पर बमबारी की है।

लीबिया को 'नो फ्लाई ज़ोन'घोषित करने का मतलब होगा कि देश के लड़ाकू विमान अगर आसमान में दिखे तो उन्हें मार गिराया जाएगा। अमेरिका और मित्र देश नाटो सेनाओं की मदद से जल्द ही ऐसा कदम उठा सकते हैं।

लेकिन अमेरिका के इस निर्णय का अर्थ गृह- युद्ध से जूझ रहे एक देश में फौजी हस्तक्षेप करना होगा, जो अरब देशों ख़ास कर ईरान को कतई मंज़ूर नहीं है। अंग्रेजी के प्रतिष्ठित अखबार द गार्जियन के अनुसार कर्नल गद्दाफी ने भी साफ़ कर दिया है कि यदि लीबिया पर 'नो फ्लाई ज़ोन' जैसा कोई भी कदम उठाया गया तो उसका जवाब 'हथियार' से ही दिया जाएगा।

गद्दाफी के अनुसार पश्चिमी मुल्कों का असल मकसद लीबिया के तेल संसाधनों पर कब्ज़ा जमाना है। यही नहीं,ईरान ने तो खुलकर धमकी दी है कि यदि नाटो सेनाओं ने लीबिया पर सैन्य कार्रवाई की तो वहां उसके सैनिकों की कब्रगाह बन जाएगी। ऐसे में लीबिया में चल रहा गृह युद्ध किसी बड़े विवाद में तब्दील हो सकता है।

फिर बन रहे हैं दो ध्रुव

लीबिया का संकट धीरे-धीरे विश्व युद्ध में भी बदलने के आसार दिख रहे हैं। लीबिया के मुद्दे पर विश्व अब दो धड़ों में बंट रहा है। अमेरिका के विरोधी देश, धीरे-धीरे या तो गद्दाफी के पक्ष में आ रहे हैं या फिर वे चुप हैं।

वहीं बेलारूस भी लीबिया के समर्थन में आ गया है। दोनों देशों के बीच कई विमानों को उड़ान भरते देखा गया है। यही नहीं हथियारों से लैस कई पोत बेलारूस से लीबिया पहुंच चुके हैं। यह जानकारी हथियार विशेषज्ञ हग ग्रिफिथ ने एक विदेशी पत्रिका में दी। हग स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट के लिए भी काम कर चुके हैं। क्यूबा, वेनेजुएला आदि देश भी लीबिया के समर्थन में हैं। लेटिन अमेरिका के इन देशों के अलावा भी कई देशों ने लीबिया को समर्थन दिया है।

किस देश के क्या हित जुड़े हैं

पहले दो विश्व युद्धों की तरह की स्थितियां इस बार भी बन रही हैं। अमेरिका की निगाहें तेल निर्यातक देशों पर हैं। इसी के चलते अमेरिका ने रासायनिक हथियारों की जांच की आड़ में इराक पर हमला कर तानाशाह सद्दाम हुसैन को सजा दी थी। अब मिस्र और लीबिया में भी वह हस्तक्षेप कर रहा है। मध्य-पूर्व के देश अमेरिका के हस्तक्षेप को बर्दाश्त नहीं करना चाहते हैं। ईरान इस मामले में खुल कर अमेरिका का विरोध कर रहा है। वैसे भी ईरान के अमेरिका के साथ रिश्ते सौहाद्र्रपूर्ण नहीं हैं, दूसरा अगर मध्य-पूर्व में अमेरिका का नियंत्रण और प्रभुत्व स्थापित होता है तो इससे ईरान की नीतियों पर भी असर पड़ेगा।

ऐसे में लीबिया का साथ देना ईरान की मजबूरी है। बेलारूस इसलिए लीबिया का समर्थन कर रहा है, क्योंकि इसमें उसके राजनैतिक और आर्थिक हित हैं। रूस भी अगर साफ तौर पर लीबिया के साथ नहीं दिख रहा है तो भी वह परोक्ष रूप से उसका समर्थन कर रहा है। मध्य-पूर्व में अमेरिका इसलिए विशेष रुचि ले रहा है, क्योंकि अमेरिका की नजर मध्य-पूर्व के अकूत तेल भंडार पर है। ऐसे में विषम होती परिस्थितियां तृतीय विश्व युद्ध का संकेत दे रही हैं।

लीबिया की धमकी से डरा अमेरिका?

लेकिन लग रहा है कि फिलहाल अमेरिका और नाटो सेनाएं लीबिया में हमला करने की धमकी से अब पीछे हटते दिखाई दे रहे हैं।  नाटो प्रमुख ने कहा है कि लीबिया में तत्काल हस्तक्षेप की कोई योजना नहीं है, लेकिन गठबंधन की सेनाएं किसी भी घटनाक्रम पर तुरंत कदम उठाने को तैयार है। इसी बीच एक लीबियाई अधिकारी मिस्र की राजधानी पहुंचा है। आज भी भारतीय नागरिकों का अंतिम जत्था लीबिया से लौटेगा।इसी बीच लीबिया में सरकार समर्थक और विरोधियों के बीच हिंसा जारी है।

अमेरिका ने हालांकि पहले धमकी दी कि वे लीबिया पर सैन्य हमला करने के विकल्प पर भी विचार कर रहे हैं। लेकिन अब इसे टाल दिया गया है।  नाटो प्रमुख अंदर्स फो रासमुसेन ने कहा कि लीबिया में किसी भी तरह की कार्रवाई के लिए संयुक्त राष्ट्र का जनादेश और व्यापक अंतरराष्ट्रीय समर्थन जरूरी है। ब्रिटेन के स्काई न्यूज से बातचीत में उन्होंने कहा, नाटो लीबिया में कोई हस्तक्षेप नहीं करने जा रहा है, लेकिन हमने अपनी सेनाओं से कहा है कि किसी भी तरह के हालात से निपटने के लिए वे अपनी योजना तैयार रखें। उन्होंने कहा कि इस बारे में क्षेत्र में बहुत सी बातों का ख्याल रखना होगा क्योंकि इसे विदेशी सैन्य हस्तक्षेप समझा जा सकता है। इसलिए ऐसे किसी भी कदम के लिए व्यापक अंतरराष्ट्रीय समर्थन बेहद जरूरी है।

अमेरिका ने कहा नो फ्लाइंग जोन का फैसला संयुक्त राष्ट्र को लेना है

अमेरिकी विदेश हिलेरी क्लिंटन ने कहा कि नो फ्लाई जोन लागू करने के बारे में संयुक्त राष्ट्र को फैसला लेना है। नाटो प्रमुख भी इस बात से सहमत हैं. उन्होंने कहा,  नो फ्लाई जोन स्थापित करना थोड़ा सा पेचीदा है। इसके लिए भी संयुक्त राष्ट्र के जनादेश की जरूरत होगी। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का मौजूदा प्रस्ताव सैन्य बलों के इस्तेमाल की इजाजत नहीं देता। ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने भी इसी तरह की बात कही है। उन्होंने कहा कि ब्रिटेन नो फ्लाई जोन सहित लीबिया के खिलाफ उठाए जाने वाले संभावित कदमों पर अंतरराष्ट्रीय समर्थन चाहता है।

तेल में लगेगी आग

लीबिया के संकट के बाद विश्व पर तेल की कमी का खतरा भी मंडरा रहा है। विश्व के सबसे बड़े तेल उत्पादक देश सऊदी अरब में तेल कंपनियों के शेयर एकदम गिर गए हैं। अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के अधिकारी फातिह बैरोल ने कहा कि सस्ते तेल का समय अब खत्म हो गया है। कुवैत और संयुक्त अरब अमीरात में भी तेल कंपनियों के शेयर के दाम नीचे आ गए हैं। लीबिया से तेल का निर्यात रुका हुआ है और अब तेल उत्पादक दूसरे देश भी कीमतें बढ़ाने पर गंभीरता से विचार कर रहे हैं।

लंदन में गद्दाफी के बंगले पर कब्जा

लंदन में कुछ प्रदर्शनकारियों ने उत्तरी लंदन के महल पर कब्जा कर लिया। यह महल गद्दाफी के बेटे सैफ का है। इन प्रदर्शनकारियों के नेता ने कहा कि उन्हें ब्रिटेन की सरकार पर यकीन नहीं है। उन्होंने कहा कि गद्दाफी की पूरी संपत्ति लीबियाई निवासियों को ही मिलनी चाहिए। इस बंगले में स्विमिंग पूल, स्पा और सिनेमा घर भी हैं।

विपक्षी नेता पर इनाम

लीबिया में युद्ध काफी तेज हो गया है। पहली बार गद्दाफी ने देश के प्रमुख तेल ठिकाने पर बमबारी की है। इसके अलावा गद्दाफी ने मुख्य विरोधी नेता की गिरफ्तारी के लिए नगद इनाम की भी घोषणा की है।


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