Thursday, March 31, 2011

पूजा से पहले गाय के गोबर से पूजन के स्थान को पवित्र क्यों करना चाहिए?

हिन्दू धर्म ग्रंथों के अनुसार गाय में 33 करोड़ देवताओं का वास माना गया है। गाय के पूरे शरीर को ही पवित्र माना गया है लेकिन गाय का गोबर सर्वाधिक पवित्र माना जाता है। क्योंकि शास्त्रों के अनुसार गाय के मुख वाले भाग को अशुद्ध और पीछे वाले भाग को शुद्ध माना जाता है।साथ ही गोबर में लक्ष्मी का निवास माना गया है। इसीलिए जब भी कोई पूजन कार्य किया जाता है या हवन जैसा कोई बड़ा धार्मिक कार्य किया जाता है तो उस जगह को गाय के गोबर से लिपा जाता है।

ऐसा क्यों होता है?

जिस चीज को अपवित्र कहा जाता हो वही गोबर जब गाय का होता है तो उसे पवित्र मान लिया जाता है। क्या इसके पीछे भी कोई कारण है? गोबर भयानक रोगों को भी ठीक करने में सहायक है। दरअसल गोबर से कई बीमारियों से मुक्ति मिलती है इसलिए पुराने जमाने में जब भोजन गोबर के  उपले  और लकडिय़ों से बनता था तो कई तरह की बीमारियां नहीं होती थी। जो आज हमें देखने को मिलती है।इसके बैक्टिरिया अन्य कई जटिल रोगों में भी फायदेमंद होते हैं। गोबर का धुआं अपने आस-पास के वातावरण को भी शुद्ध रखता है। इसके धुएं से घर की सकारात्मक ऊर्जा में वृद्धि

आपको पता है, मंदिर में चप्पल पहनकर क्यों नहीं जाते हैं?

हमारे यहां हर धर्म के देवस्थलों पर नंगे पांव प्रवेश करने का रिवाज है। चाहे मंदिर हो या मस्जिद गुरुद्वारा हो या  जैनालय आदि सभी धर्मों के देवस्थलों के अंदर सभी श्रद्धालु जूते-चप्पल बाहर उतारकर ही प्रवेश करते हैं। मंदिरों में नंगे पैर प्रवेश करने के पीछे कई कारण हैं।  देवस्थानों का निर्माण कुछ इस प्रकार से किया जाता है कि उस स्थान पर काफी सकारात्मक ऊर्जा एकत्रित होती रहती है।

नंगे पैर जाने से वह ऊर्जा पैरों के माध्यम से हमारे शरीर में प्रवेश कर जाती है। जो कि हमारे स्वास्थ्य के लिए भी बहुत लाभदायक रहती है। साथ ही नंगे पैर चलना एक्यूप्रेशर थैरेपी ही है और एक्यूप्रेशर के फायदे सभी जानते हैं लेकिन आजकल अधिकांश लोग घर में भी हर समय चप्पल पहनें रहते हैं इसीलिए हम देवस्थानों में जाने से पूर्व कुछ देर ही सही पर जूते-चप्पल रूपी भौतिक सुविधा का त्याग करते हैं। इस त्याग को तपस्या के रूप में भी देखा जाता है।  जूते-चप्पल में लगी गंदगी से मंदिर की पवित्रता भंग ना हो, इस वजह से हम उन्हें बाहर ही उतारकर देवस्थानों में नंगे पैर जाते हैं।

पैसा कहां और कैसे रखें?

पैसा या धन रखने के लिए सभी के घरों में कोई स्थान होता ही है। कुछ लोग पैसा तिजोरी में रखते है तो कुछ अलमारी में, वहीं कुछ लोग अन्य सुरक्षित स्थान पर। चोरों से बचाने के लिए पैसा किसी विशेष जगह पर ही रखा जाता है। वास्तु अनुसार बताए गए स्थान पर पैसा रखने से आपका धन सुरक्षित तो रहेगा साथ ही उसमें बरकत भी बनी रहेगी साथ ही परिवार के आय के स्रोतों में बढ़ोतरी होगी।

वास्तु शास्त्र के अनुसार धन के देवता कुबेर का स्थान उत्तर दिशा में माना जाता है। उत्तर दिशा का प्रभाव गृहस्वामी के धन की सुरक्षा और समृद्धि देने वाला माना जाता है। मतलब वास्तु शास्त्र के अनुसार गृहस्वामी को अपने नकद धन को उत्तर दिशा में रखना चाहिए। नकद धन के लिए अलग से कमरा बनाना आज के जमाने में तो संभव नहीं है। यह तो सिर्फ पुराने जमाने में राजे रजवाड़ो के लिए संभव था। इसलिए गृहस्थ को अपना धन उत्तर दिशा के बेडरुम में रखना चाहिये। नकद, गहनों एवं अन्य कीमती चीजों को उत्तर दिशा में किसी स्थान पर रखना बहुत शुभ फल देने वाला होता हैं लेकिन उत्तर दिशा के पूजा स्थान के आसपास मे इसका स्थान उत्तम होता है धन को इस स्थान पर रखने से धन में तेजी से वृद्धि होने लगती है।

इसमें एक अलग मत और भी है कुछ वास्तुशास्त्रियों के अनुसार नकद धन को उत्तर में रखना चाहिए और रत्न, आभूषण आदि दक्षिण में रखना चाहिए। ऐसा इसलिए माना जाता है क्योंकि नकद धन आदि हल्के होते है इसलिए इन्हे उत्तर दिशा में रखना वृद्धिदायक माना जाता है। रत्न आभूषण में वजन होता है इसलिए उन्हे कहीं भी नहीं रखा जा सकता है। इसके लिए तिजोरी या अलमारी की आवश्यकता होती है और ये काफी भारी होती है। इसलिए दक्षिण दिशा में रख उसमें आभूषण आदि रखने को उतम माना जाता है।

Monday, March 14, 2011

support Japan

गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज हुई 'मुन्नी'!


 सलमान खान और सोनाक्षी सिन्हा अभिनीत फिल्म दबंग का आयटम सांग ‘मुन्नी बदनाम हुई’ गिनीज बुक में दर्ज हो चुका है।  मेलबोर्न पार्क में 1200 से ज्यादा लोगों ने इस गाने पर तीन मिनट तक डांस किया। यह कार्यक्रम फिल्म फेस्टिवल 2011 के निदेशक मीतू भौमिक लांगे द्वारा आयोजित किया गया था।
मीतू ने कहा, ‘इतने सारे लोगों को एक ही साथ, एक ही गाने पर एक जैसे स्टेप्स पर डांस करते देखना अद्भुत था।’ इससे पहले यह रिकॉर्ड सिंगापुर में स्थापित किया गया था जिसमें किसी और गाने पर 1008 लोगों ने डांस किया था।

भारत में सूनामी से मरे थे 3 लाख, जापान में काफी कम, आखिर क्‍यों?

नई दिल्‍ली. जापान में 11 मार्च, 2011 को आए भूकंप और सूनामी से मरने वालों की तादाद करीब 2000 बताई जा रही है। पर 26 दिसंबर, 2004 को भारत, श्रीलंका, इंडोनेशिया और थाईलैंड जैसे एशियाई देशों में आई सूनामी 2 लाख 26 हजार लोगों को लील गई थी। जापान में आई सूनामी की तीव्रता, 2004 में भारत में आई सूनामी की तीव्रता (9.1-9.3) जापान की सूनामी की तीव्रता (8.9) से थोड़ी ही अधिक थी। पर मौत के आंकड़े में इतना बड़ा फासला! आखिर क्‍यों?इसका सीधा कारण यही है कि जापान ने भूकंप के खतरे को समझ कर उससे निपटने के लिए अपने को हर तरह से तैयार किया है, लेकिन भारत में इस खतरे को अच्‍छी तरह समझा भी नहीं गया है। इससे निपटने का उपाय तो दूर की कौड़ी है।

भारत में कम नहीं है खतरा
भारत में 65 फीसदी क्षेत्र भूकंप संवेदनशीलता के लिहाज से जोन 3 में आता है। पूरे भारत को भूकंप संवेदनशीलता के लिहाज से चार सिस्मिक जोन (2, 3, 4 और 5) में बांटा गया है। जोन 5 में वे इलाके हैं जहां रिक्‍टर पैमाने पर 9 या उससे ज्‍यादा तीव्रता के भूकंप आने का खतरा रहता है। जोन 4 में 8 से 9 और जोन 3 में 6 से 8 तीव्रता वाले भूकंप का खतरा वाला इलाका रखा गया है। 17 राज्‍यों के 169 जिले भूकंप के लिहाज से सबसे ज्‍यादा संवेदनशील हैं।देश की राजधानी दिल्‍ली सिस्मिक जोन 4 में आता है। यहां भूकंप से पूर्वी दिल्‍ली इलाके (यमुना के करीबी) में ही एक लाख से भी ज्‍यादा घर जमींदोज हो सकते हैं। प्रोफेसर टीके दत्‍ता कहते हैं, ‘दिल्‍ली की मिट्टी में नमी बढ़ गई है और इसकी ताकत खोती जा रही है।’ दिल्‍ली में 2006 में मकानों में भूकंपरोधी तकनीक का इस्‍तेमाल अनिवार्य किया गया, लेकिन आज भी इस नियम का लगभग सौ फीसदी उल्‍लंघन हो रहा है। बाकी शहरों का भी यही हाल है।दिल्‍ली की 80 फीसदी से ज्‍यादा आबादी झुग्गियों या अनियमित कॉलोनियों में रहती है। इनके मकान इंजीनियर की सलाह के बिना बनाए गए होते हैं। प्रोफेसर एस. मुखर्जी के मुताबिक दिल्‍ली और कोलकाता के कुछ इलाकों में प्रति वर्ग किलोमीटर 2 लाख से भी ज्‍यादा लोग रह रहे हैं। ऐसे में भीषण भूकंप की स्थिति में जान का ज्‍यादा नुकसान होने का खतरा है।

जापान में सबसे ज्‍यादा खतरा

जापान में औसतन हर पांच मिनट पर भूकंप के हल्के झटके आते रहते हैं। दुनिया में रिक्टर स्केल पर 6 या उससे ज़्यादा तीव्रता वाले भूकंपों में से से 20 फीसदी सिर्फ जापान में आते हैं। जापान के पास मौजूद पैसिफिक बेसिन में समुद्र के भीतर ज्वालामुखी विस्फोट बहुत होते हैं। जापान 'रिंग ऑफ फायर' ज़ोन में स्थित है। जापान में भूकंप और सूनामी का लंबा इतिहास रहा है।जापानी लोगों को भूकंप झेलने की आदत हो गई है और वे इनसे बचने में माहिर हो गए हैं। वहां नियमित रूप से लोगों को भूकंप से बचने की ट्रेनिंग दी जाती है और अभ्‍यास कराया जाता है।

पर हमेशा तैयार रहता है जापान

जापान में सूनामी के प्रति आगाह करने का तंत्र बेहद मजबूत है। जापान ने भूकंप और इसके खतरों का जितना गहन अध्‍ययन किया है, उतना दुनिया के किसी देश ने नहीं किया है। इसी अध्‍ययन के आधार पर नियम बनाए हैं। देश भर में छोटे मकान से बड़ी इमारतें बनाने में इन नियमों का कड़ाई से पालन किया जाता है। वहां ऐसी व्‍यवस्‍था है कि भूकंप की स्थिति में परमाणु रिएक्‍टर अपने आप बंद हो जाता है।जापान ने भूकंप और सूनामी से जुड़े अध्‍ययनों और इससे नुकसान कम करने के लिए तकनीक विकसित करने पर अरबों डॉलर खर्च किए हैं। जापान में छह क्षेत्रीय केंद्रों के जरिए 180 सिसमिक स्टेशनों और 80 सेंसरों से सिग्नल भेजे जाते हैं, जो पानी में हैं। इनकी 24 घंटे निगरानी की जाती है। जापान में मौसम विभाग और समाचार चैनलों ने एक सिस्टम विकसित किया है, जिसमें किसी भूकंप या सूनामी जैसी किसी त्रासदी से पहले टीवी चैनलों पर चेतावनी फ्लैश होने लगती है। इसके अलावा सेटेलाइटों के जरिए जापान भर में स्थानीय अधिकारियों को ऐसी चेतावनी की जानकारी दी जाती है। साथ ही साइरन बजाने और लाउडस्पीकर पर भी संदेश प्रसारित करने और किसी भी त्रासदी में फंसे लोगों को बचाने का भी बेहतरीन इंतजाम है। जापान अपने चेतावनी तंत्र पर करीब 2 करोड़ डॉलर हर साल खर्च करता है। वहां भूकंप रोधी इमारतें बनाना कानूनी तौर पर जरूरी है।इसके उलट, भारत में आपदा प्रबंधन के लिए केंद्रीय और राज्य स्तर पर कुछ समितियां बना कर खानापूर्ति की गई है। इसमें निजी क्षेत्र की कुछ कंपनियों को शामिल किया गया है। जानकारों का मानना है कि भारत में आपदा प्रबंधन बिल्कुल कारगर नहीं है। यह हर बार साबित भी हो चुका है।

भारत में ऐसी त्रासदी का पता लगाने के कोई ठोस तंत्र नहीं है। मौसम विभाग की भविष्यवाणियां अक्सर गलत साबित होती हैं। भूकंप को लेकर चेतावनी देने का कोई कारगर सिस्टम नहीं है। भारत में भूकंप या सूनामी जैसी बड़ी प्राकृतिक आपदा के बाद फंसे लोगों को बचाने का भी बहुत उन्नत तंत्र नहीं है।भारत में 26 दिसंबर, 2004 को सूनामी की भेंट 18 हजार जिंदगियां चढ़ गई थीं। एशिया प्रशांत क्षेत्र में उस सूनामी के चलते करीब तीन लाख लोगों की मौत हुई थी। अकेले इंडोनेशिया में सवा दो लाख लोग सूनामी की भेंट चढ़ गए थे।भारत में हैदराबाद में सूनामी चेतावनी केंद्र बनाया गया है और दावा है कि किसी बड़े भूकंप के 10 मिनट के भीतर यह केंद्र सूनामी की चेतावनी देने में सक्षम है। इंडियन नेशनल सेंटर फॉर ओशन इन्‍फॉर्मेशन सर्विसेज में 125 करोड़ रुपये खर्च कर चेतावनी केंद्र स्‍थापित किया गया है। इस केंद्र की ओर से पिछले तीन सालों में भूकंप के 25-30 अलर्ट जारी किए गए हैं।

राहत और बचाव में भी पीछे

अस्‍पताल और डॉक्‍टर: भारत में किसी भी आपदा के समय जान का ज्‍यादा नुकसान इसलिए भी हो जाता है, क्‍योंकि यहां बुनियादी सुविधाओं का घोर अभाव है। भारत में हर एक हजार की आबादी के लिए अस्पताल में एक बिस्तर (0.7:1000) भी उपलब्ध नहीं है, जबकि जापान में यह अनुपात 8.2:1000 है। दुनिया के अन्य देशों का औसत 3.96 है। भारत में 1,722 लोगों की आबादी के लिए औसतन 1 डॉक्टर उपलब्ध है, जबकि जापान में प्रति एक हजार की आबादी पर औसतन 2.1 डॉक्टर है।

पैसे की दिक्‍कत: भारत सकल घरेलू उत्पाद के मामले में दुनिया की ग्यारहवीं सबसे बड़ी अर्थव्यस्था है। भारत की मौजूदा विकास दर 8.2 फीसदी है। दूसरी ओर, जापान कुछ समय पहले तक दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी (अब तीसरी) अर्थव्यवस्था वाल देश था।

सबसे महंगी आपदा साबित हुई जापान की सूनामी

टोक्यो. जापान में आए भूकंप और सूनामी के रूप में आई प्राकृतिक आपदा, संभवतः विश्व की सबसे महंगी आपदा है। इसमें हुआ नुकसान, विश्व में अब तक आई विपदाओं में सबसे ज्यादा है। जापान में आई इस आपदा से 100 बिलियन डॉलर (4500 अरब रुपए) का शुरुआती नुकसान आंका गया है। यह रकम भारत के कुल रक्षा बजट (36.03 बिलियन डॉलर) से करीब तीन गुना है। करीब 20 बिलियन डॉलर (900 अरब रुपए) का नुकसान तो इमारतों के गिरने से हुआ है और इसका दोगुना सड़क, रेल लाइन और विभिन्न बंदरगाहों के नष्ट होने से नुकसान हुआ है।

इतना बड़ा झटका सहने के बाद सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती अर्थव्यवस्था स्थिर रखने की है। इसके लिए जापान के सेंट्रल बैंक ने 15 ट्रिलियन येन (8235 अरब रुपए) बाजार में दिए हैं। बैंक ऑफ जापान ने भी बाजार में 5 ट्रिलियन येन (2745 अरब रुपए) देने का फैसला किया है, जिससे निवेशकों का विश्वास बना रहे। इसके बाद भी जापानी बाजार में घबराहट है। यह तब दिखा जब आपदा के बाद सोमवार को पहली बार शेयर बाजार खुला और निक्की 6.2 फीसदी गिरा। यह गिरावट दिसंबर 2008 के बाद एक दिन में आई सबसे बड़ी गिरावट थी।

जापान आर्थिक मोर्चे पर पहले से पिछड़ रहा है। 2010 में यह विश्व में चीन के बाद तीसरे नंबर की अर्थव्‍यवस्‍था वाला देश बन गया। जापान कर्ज में भी बुरी तरह दबा हुआ है। यह कर्ज उसकी जीडीपी का दोगुना और विकसित देशों में सबसे ज्यादा है। जापान का व्यवसाय मुख्यतः निर्यात आधारित है, लेकिन कुछ समय से जापान की मुद्रा येन कमजोर हुई है। जापान का मियागी इलाका पूरी तरह नष्ट हो गया है। यहां की आबादी जापान की आबादी का करीब 1.7 फीसदी है और मैक्वेरी रिसर्च के विश्लेषक रिचर्ड जेरोम के अनुसार देश की अर्थव्यवस्था में भी यह इलाका करीब इतने का ही योगदान देता था।

एआईआर फर्म के अनुसार बीमा कंपनियों को भी काफी बड़ी रकम खर्च करनी होगी। बीमा कंपनियों को केवल भूकंप से हुए नुकसान के कारण करीब 15 से 35 बिलियन डॉलर (675 से 1575 अरब रुपए) का मुआवजा देना होगा। इसमें सूनामी के कारण देश में हुआ नुकसान और फुकुशिमा डायची न्यूक्लियर रिएक्टर को हुआ नुकसान शामिल नहीं है। जेरोम ने कहा कि अभी कुल नुकसान का आंकलन मुश्किल है क्योंकि अभी तो पूरी आपदा की सही तस्वीर ही सामने नहीं आई है। पर यह तय है कि नुकसान अब तक दुनिया में आई किसी भी प्राकृतिक आपदा में हुए नुकसान से ज्‍यादा ही होगा।

सबसे महंगी आपदा साबित हुई जापान की सूनामी


जापान में तीसरे रिएक्टर में विस्फोट, विकिरण का खतरा बढ़ा

टोक्यो. फुकुशिमा ऐटमी प्लांट में तीसरे ब्लास्ट से जापान में परमाणु विकिरण का ख़तरा बढ़ता जा रहा है। ताज़ा मामले में फुकुशिमा दायिची ऐटमी प्लांट नंबर 1 के रिएक्टर नंबर 2 में विस्फोट होने की ख़बर है। इससे पहले पहले जापान ने अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी से ऐटमी प्लांट में हो रहे विस्फोट को रोकने के लिए मदद की मांग की है।

ताज़ा विस्फोट भारतीय समय के मुताबिक सुबह 6:10 बजे हुआ। टोक्यो इलेक्ट्रिक पावर कॉरपोरेशन (टेपको) ने इस बाबत जानकारी दी है कि धमाका रिएक्टर के कंटेनमेंट वेसेल के सप्रेशन पूल में हुआ है। पूल में खराबी आने की बात भी सामने आई है। जापान के प्रधानमंत्री नाओतो कान ने यह माना है कि जापान में परमाणु प्लांट में विस्फोट की वजह से विकिरण का स्तर बढ़ रहा है।

इससे पहले सोमवार को फुकुशिमा ऐटमी प्लांट के पहले और तीसरे रिएक्टर में विस्फोट हो चुके हैं। गौरतलब है कि शुक्रवार को जापान के उत्तर-पूर्व इलाके में आए भूकंप और सूनामी के चलते हजारों लोग मारे गए हैं या लापता हैं। मंगलवार की सुबह तक करीब 2414 लोगों की मौत होने की पुष्टि हो चुकी है। जबकि करीब 72 हजार इमारतें या घर इस तबाही में बर्बाद हो गए।

प्रकृति की यह आपदा जापान के फुकुशिमा में मौजूद परमाणु संयंत्रों लिए भी खतरनाक साबित हुई है। इन संयंत्रों में बिजली की सप्लाई ठप होने के चलते कूलिंग का काम नहीं हो पा रहा है। जापान के इवाकी क्षेत्र से पांच सदस्यों का एक भारतीय परिवार भी 11 मार्च से ही लापता बताया जा रहा है। 13 साल से जापान में रह रहे नरिंदर कुमार, उनकी पत्नी और तीन बच्चों का कुछ पता नहीं चल रहा है।

Friday, March 11, 2011

19 dead as huge tsunami hits Japan after massive quake

TOKYO: The biggest earthquake to hit Japan in 140 years struck the northeast coast on Friday, triggering a 10-metre tsunami that swept away everything in its path, including houses, cars and farm buildings on fire, media and witnesses said.

The death toll from the earthquake has reached 19, press reports said. The dead included a 67-year-old man crushed by a wall and an elderly woman killed by a fallen roof, both in the wider Tokyo area, press reports said.

Three were crushed to death when their houses collapsed in Ibaraki prefecture, northeast of Tokyo. 

The magnitude 8.9 offshore quake was followed by at least 19 aftershocks, most of them of more than magnitude 6.0. Dozens of cities and villages along the 1,300-mile (2,100-kilometer) stretch of the country's eastern shore were shaken by violent tremors that reached as far away as Tokyo, hundreds of miles (kilometers) from the epicenter in the sea off the northeastern coast.


The National Police Agency, charged with compiling nationwide data on natural disasters, could not immediately confirm the figures.

"The damage is so enormous that it will take us much time to gather data," an official at the agency said.

In Fukushima prefecture, four million homes were without power. The 8.9 magnitude quake caused many injuries, public broadcaster NHK said, sparked fires and the wall of water, prompting warnings to people to move to higher ground in coastal areas. ( Japan nuclear plants shut after quake )

Thursday, March 10, 2011

मेडिकल और डेंटल पाठ्यक्रम में शामिल होगा तंबाकू रोकथाम


नई दिल्ली. तंबाकू विरोधी अभियान को गति देने के लिए केंद्र सरकार ने एक नायाब योजना बनाई है। बहुत जल्द एमबीबीएस, एमडी के छात्रों को तंबाकू रोकथाम और इलाज का नया विषय भी पढ़ना पड़ेगा।

मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया और डेंटल काउंसिल ऑफ इंडिया को अपने पाठ्यक्रमों में तंबाकू रोकथाम और इलाज संबंधी विषय शामिल करने के निर्देश दिए गए हैं। एमसीआई एमबीबीएस का नया पाठ्यक्रम तैयार करने के अंतिम चरण में है। 

स्वास्थ्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि ज्यादातर तंबाकू खाने वाले लोग इस लत से छुटकारा पाने की कोशिश करते हैं। लेकिन तंबाकू रोकथाम केंद्रों और संबंधित डॉक्टरों की कमी की वजह से उनकी कोशिश नाकाम हो जाती है। ऐसे में स्वास्थ्य मंत्रालय चाहता है कि इस समस्या को दूर करने के लिए सभी संकायों की पढ़ाई कर रहे डॉक्टरों के लिए अनिवार्य पाठ्यक्रम होना चाहिए।