बाजार की हालत पतली क्यों
लीबिया व मध्य-पूर्व में राजनीतिक अशांति ने छीना बाजार का चैन
महंगे क्रूड के कारण ब्याज दरें अभी और बढऩे का अंदेशा
ग्लोबल स्तर पर आर्थिक विकास की गति धीमी पडऩे की आशंका
खाद्य पदार्थों की महंगाई दर फिर बढऩे से बढ़ी बिकवाली
कई विदेशी शेयर बाजारों से मिले गिरावट के समाचार
चालू खाता घाटे में लगातार वृद्धि से भी कारोबारी रहे आशंकित
लीबिया और मध्य-पूर्व में बढ़ती राजनीतिक अशांति ने शेयर बाजार का चैन भी छीन लिया है। दरअसल, इस वजह से लगातार महंगे हो रहे क्रूड ऑयल से गुरुवार को कारोबारी फिसलन इतनी ज्यादा बढ़ गई जिसमें बाजार भी औंधे मुंह गिर गया। बॉम्बे शेयर बाजार का सेंसेक्स तो तकरीबन 546 अंक लुढ़क गया। यह पिछले 18 महीनों के दौरान किसी एक दिन में सेंसेक्स मेेंं सर्वाधिक गिरावट है। महंगाई के बढ़ते दबाव को भी बाजार झेल नहीं पाया। चालू खाता घाटे में लगातार बढ़ोतरी के साथ-साथ ब्याज दरों में अभी और बढ़ोतरी की आशंका से भी कारोबारी घबरा गए जिससे उन्होंने शेयरों की बिकवाली तेज कर दी। फरवरी महीने के डेरिवेटिव अनुबंधों के अंतिम दिन सौदों की कटान के चलते भी गुरुवार को बाजार में नरमी देखी गई।
हांगकांग एवं जापान समेत कई विदेशी शेयर बाजारों से मिले गिरावट के समाचारों से भी यहां कारोबारी धारणा काफी कमजोर पड़ गई। सेंसेक्स अंतत: 545.92 अंकों अथवा 3 फीसदी की भारी गिरावट के साथ 17,632.41 अंक पर बंद हुआ। इससे पहले 17 अगस्त 2009 को सेंसेक्स ने 626.71 अंकों की भारी गिरावट दर्शाई थी। बाजार जानकारों का कहना है कि क्रूड ऑयल की कीमतें फिर से आसमान पर पहुंच जाने के कारण निवेशकों केे मन में यह आशंका घर कर गई है कि इससे जहां एक ओर देश में ब्याज दरें और बढ़ सकती हैं, वहीं दूसरी ओर ग्लोबल स्तर पर आर्थिक विकास की रफ्तार भी धीमी पड़ सकती है।
मालूम हो कि ब्रेंट नॉर्थ सी क्रूड ऑयल की कीमत बुधवार को काफी तेजी के साथ बढ़कर 29 माह के उच्चतम स्तर तकरीबन 120 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गई। इसी तरह न्यूयॉर्क में अपै्रल में डिलीवरी किए जाने वाले लाइट स्वीट क्रूड की कीमत भी अब बढ़कर 100 डॉलर प्रति बैरल का मनोवैज्ञानिक आंकड़ा पार कर गई है। भारत को क्रूड ऑयल की अपनी कुल आवश्यकता का तकरीबन 70 फीसदी आयात के जरिए पूरा करना पड़ता है। ऐसे में देश में महंगाई की आग और भड़क सकती है जिससे आरबीआई अपनी नीतिगत दरों जैसे रेपो रेट को और बढ़ाने पर विवश हो सकता है। ऐसा होने पर देश के बैंक भी अपनी-अपनी ब्याज दरों को और बढ़ा देंगे जिसका खमियाजा अंतत: कंपनियों को अपनी घटती आय के रूप मे भुगतना पड़ेगा।
आईआईएफएल के रिसर्च हेड अमर अंबानी का कहना है कि क्रूड ऑयल की कीमतों में कोई भी बढ़ोतरी भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए ठीक नहीं है क्योंकि इससे चालू खाता घाटा और भी ज्यादा बढ़ जाएगा। गुरुवार को बाजार में चौतरफा बिकवाली देखने को मिली। इस वजह से खासकर ऑटो, मेटल, बैंक, कैपिटल गुड्स, कंज्यूमर ड्यूरेबल्स और रियल्टी शेयरों में खासी गिरावट देखने को मिली। बीएसई के तमाम 13 सूचकांकों में 1.86 फीसदी से लेकर 3.97 फीसदी तक की गिरावट दर्ज की गई।
लीबिया व मध्य-पूर्व में राजनीतिक अशांति ने छीना बाजार का चैन
महंगे क्रूड के कारण ब्याज दरें अभी और बढऩे का अंदेशा
ग्लोबल स्तर पर आर्थिक विकास की गति धीमी पडऩे की आशंका
खाद्य पदार्थों की महंगाई दर फिर बढऩे से बढ़ी बिकवाली
कई विदेशी शेयर बाजारों से मिले गिरावट के समाचार
चालू खाता घाटे में लगातार वृद्धि से भी कारोबारी रहे आशंकित
लीबिया और मध्य-पूर्व में बढ़ती राजनीतिक अशांति ने शेयर बाजार का चैन भी छीन लिया है। दरअसल, इस वजह से लगातार महंगे हो रहे क्रूड ऑयल से गुरुवार को कारोबारी फिसलन इतनी ज्यादा बढ़ गई जिसमें बाजार भी औंधे मुंह गिर गया। बॉम्बे शेयर बाजार का सेंसेक्स तो तकरीबन 546 अंक लुढ़क गया। यह पिछले 18 महीनों के दौरान किसी एक दिन में सेंसेक्स मेेंं सर्वाधिक गिरावट है। महंगाई के बढ़ते दबाव को भी बाजार झेल नहीं पाया। चालू खाता घाटे में लगातार बढ़ोतरी के साथ-साथ ब्याज दरों में अभी और बढ़ोतरी की आशंका से भी कारोबारी घबरा गए जिससे उन्होंने शेयरों की बिकवाली तेज कर दी। फरवरी महीने के डेरिवेटिव अनुबंधों के अंतिम दिन सौदों की कटान के चलते भी गुरुवार को बाजार में नरमी देखी गई।
हांगकांग एवं जापान समेत कई विदेशी शेयर बाजारों से मिले गिरावट के समाचारों से भी यहां कारोबारी धारणा काफी कमजोर पड़ गई। सेंसेक्स अंतत: 545.92 अंकों अथवा 3 फीसदी की भारी गिरावट के साथ 17,632.41 अंक पर बंद हुआ। इससे पहले 17 अगस्त 2009 को सेंसेक्स ने 626.71 अंकों की भारी गिरावट दर्शाई थी। बाजार जानकारों का कहना है कि क्रूड ऑयल की कीमतें फिर से आसमान पर पहुंच जाने के कारण निवेशकों केे मन में यह आशंका घर कर गई है कि इससे जहां एक ओर देश में ब्याज दरें और बढ़ सकती हैं, वहीं दूसरी ओर ग्लोबल स्तर पर आर्थिक विकास की रफ्तार भी धीमी पड़ सकती है।
मालूम हो कि ब्रेंट नॉर्थ सी क्रूड ऑयल की कीमत बुधवार को काफी तेजी के साथ बढ़कर 29 माह के उच्चतम स्तर तकरीबन 120 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गई। इसी तरह न्यूयॉर्क में अपै्रल में डिलीवरी किए जाने वाले लाइट स्वीट क्रूड की कीमत भी अब बढ़कर 100 डॉलर प्रति बैरल का मनोवैज्ञानिक आंकड़ा पार कर गई है। भारत को क्रूड ऑयल की अपनी कुल आवश्यकता का तकरीबन 70 फीसदी आयात के जरिए पूरा करना पड़ता है। ऐसे में देश में महंगाई की आग और भड़क सकती है जिससे आरबीआई अपनी नीतिगत दरों जैसे रेपो रेट को और बढ़ाने पर विवश हो सकता है। ऐसा होने पर देश के बैंक भी अपनी-अपनी ब्याज दरों को और बढ़ा देंगे जिसका खमियाजा अंतत: कंपनियों को अपनी घटती आय के रूप मे भुगतना पड़ेगा।
आईआईएफएल के रिसर्च हेड अमर अंबानी का कहना है कि क्रूड ऑयल की कीमतों में कोई भी बढ़ोतरी भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए ठीक नहीं है क्योंकि इससे चालू खाता घाटा और भी ज्यादा बढ़ जाएगा। गुरुवार को बाजार में चौतरफा बिकवाली देखने को मिली। इस वजह से खासकर ऑटो, मेटल, बैंक, कैपिटल गुड्स, कंज्यूमर ड्यूरेबल्स और रियल्टी शेयरों में खासी गिरावट देखने को मिली। बीएसई के तमाम 13 सूचकांकों में 1.86 फीसदी से लेकर 3.97 फीसदी तक की गिरावट दर्ज की गई।