Tuesday, March 8, 2011

रिलायंस इंडस्ट्रीज (आरआईएल) के खिलाफ कानूनी कार्यवाही

ईटी नाउ : शेयर बाजार नियामक सेबी ने प्रमोटरों की हिस्सेदारी बढ़ाने संबंधी नियमों के उल्लंघन के
मामले में रिलायंस इंडस्ट्रीज (आरआईएल) के खिलाफ कानूनी कार्यवाही शुरू कर दी है। यह मामला तकरीबन रिलायंस इंडस्ट्री के 11 साल पुराने पुराने सौदे से जुड़ा है। अगर हम इस मामले में सेबी के आरोपों की बात करें तो यह मामला तकनीकी जान पड़ता है। इस मामले का सारांश यह है कि आरआईएल के प्रमोटरों ने साल 2000 में सार्वजनिक जानकारी दिए बगैर कंपनी में अपनी हिस्सेदारी 5 फीसदी से ज्यादा बढ़ा ली। यह हिस्सेदारी नॉन-कनवर्टिबल डिबेंचरों (एनसीडी) से जुड़े वारंट कनवर्जन के जरिए बढ़ाई गई। ये एनसीडी और पुराने थे और इन्हें 1994 में जारी किया गया था।

मामले की जांच कर रहे सेबी अधिकारी पीयूष गुप्ता ने इस संबंध में 24 फरवरी को नोटिस जारी किया था। आरआईएल के पास इस केस में अपनी बात रखने का विकल्प है। साथ ही, कंपनी को कथित सहमति पत्र (कॉन्सेन्ट एप्लिकेशन) भी दायर करने का अधिकार दिया गया है। सहमति पत्र के जरिए अनियमितता के लिए दोषी पाई गई कंपनी अपराध स्वीकार या इनकार किए बगैर फीस देकर मामले को रफा-दफा कर सकती है। नोटिस में कहा गया है कि इस मामले में कानूनी कार्यवाही जारी रहेगी और सहमति कार्यवाही के खत्म या खारिज होने के बाद उचित आदेश जारी किए जाएंगे।

सेबी के अधिकारी द्वारा 24 फरवरी को जारी किए गए नोटिस में कहा गया है कि साल 2000 में आरआईएल ने अपने प्रमोटरों से जुड़ी 38 इकाइयों को 12 करोड़ शेयर जारी किए थे और यह अधिग्रहण से जुड़े दिशा-निर्देशों का उल्लंघन है। सेबी के मुताबिक, आरआईएल द्वारा 38 इकाइयों को व्यक्ति के रूप में शेयर जारी किए जाने के बाद 31 मार्च 2000 को कंपनी में प्रमोटरों की हिस्सेदारी बढ़कर 38.33 फीसदी हो गई, जो 31 मार्च 1999 को 22.17 फीसदी थी। सेबी के टेकओवर नियमों के मुताबिक, प्रमोटरों को कंपनी में अपनी होल्डिंग सालाना 5 फीसदी तक बढ़ाने की इजाजत दी गई थी।

चूंकि, आरआईएल के प्रमोटरों ने अपनी हिस्सेदारी एक साल के भीतर 5 फीसदी से ज्यादा बढ़ा ली, लिहाजा सेबी के नियम 11 (1) के तहत उनके लिए इस संबंध में सार्वजनिक जानकारी मुहैया कराना जरूरी था। हालांकि, ये शेयर प्रेफरेंशियल अलॉटमेंट के तहत जारी किए गए थे, जिसे टेकओवर नियमों से छूट मिली हुई है, लेकिन हिस्सेदारी खरीदने वाले को इस संबंध में रिपोर्ट फाइल करनी थी। लेकिन न तो आरआईएल प्रमोटरों और न ही संबधित इकाइयों ने इस बारे में रिपोर्ट दाखिल की और न ही टेकओवर नियमों के तहत छूट के लिए आवेदन दिया।

इस बारे में जब रिलायंस इंडस्ट्रीज के प्रवक्ता से बात करने की कोशिश की गई, तो उन्होंने कुछ भी कहने से मना कर दिया। अगर इस मामले में दोष सिद्ध हो जाता है तो आरआईएल के प्रमोटरों पर मौद्रिक जुर्माना लगाया जा सकता है। दरअसल, जनवरी 2000 में 75 रुपए के हिसाब से 38 इकाईयों को 12 करोड़ शेयर जारी किए गए थे। ये शेयर वारंट के जरिए नॉन-कनवर्टिबल डिबेंचर (एनसीडी

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